कठिन जलेबी-सी कला रसमय सधी जबान ।
अवसर जैसा साध ले चमचा सुधी सुजान ॥ १
चारण कह लो, भाट या वैतालिक कुछ और ।
प्रतियोगी परिभू बहुत चमचों के सिरमौर ॥
खाय आम के आम जो , ले गुठली के दाम ।
चारु चरित गाये सदा साहब-सुयश ललाम ॥
सुखी रहे संसार में निर्लोभी निष्कण्ट ।
जहाँ नहीं फटके कभी चमचा-चाईं चण्ट ॥
पर दुनिया-ए-दौर में चमचा कहीं न फेल ।
और सदा बिकता रहे खुशबू वाला तेल ॥
कौन न जाने प्यार में नब्बे नखरे नाज़ ।
एक यही गुरुमंत्र है-"बन जा मक्खनबाज ॥
[नीहार-सतसई-अमलदार "नीहार"]
२८ दिसंबर, २०१६