गुरुवार, 9 अगस्त 2018

नीहार-हज़ारा के दोहे-

कौन बने मल्लाह?

बलात्कार की बाढ़ में टूट चुके सब बाँध।
डूब मरी है सभ्यता, भरे भँवर अपराध।। ४२० ||


मानवता की लाज की टुकडे़-टुकडे़ नाव।
छीज गयी संवेदना, बँटा हुआ सद्भाव।। ४२१ ||


बिका हुआ ईमान हो, कातिल करुणा-प्रेम।
रक्षक भक्षक हो चले, कहाँ कुशल, कब क्षेम।। ४२२ ||


राजनीति के दुर्ग में मिले ठिकाना-ठौर।
फल रसाल के खा सको, तरु बबूल के बौर।। ४२३ ||


मंत्री साझीदार जब, चकलाघर आबाद।
ओले जैसे आ गिरे, खड़ी फसँ बर्बाद।। ४२४ ||


गिरी ताड़ से आ लगी अटकी पेड़ खजूर।
कोठा-कोठी एक से रक्षित कहाँ हुजूर।। ४२५ ||


तुमने पूजे पाँव भी, दिये कठिनतम घाव।
इस मानव का, हे प्रभो! कितना जटिल स्वभाव।। ४२६ ||


मानव दानव हो गया, बिच्छू बना समाज।
कुछ विषधर भी पा गये सत्ता के सुख-साज।। ४२७ ||


चिकने-चुपडे़ चेहरे, रूह मगर शैतान।
जतन हजारों हो गये, नहीं बना इन्सान।। ४२८ ||


कहाँ सुरक्षा मिल सके, हम तो पिंजर-कीर।
रूह दफा कब की हुई, केवल कीच शरीर।। ४२९ ||


जो अबोध-सी बालिका, उस पर गिरे पहाड़।
राजनीति निर्लज्ज -सी, सजी-धजी ज्यों राँड़।। ४३० ||


आँसू दृग में अब कहाँ, सूख चले अरमान।
सजे कलाई, कौन फिर उसका भाईजान।। ४३१ ||


जहाँ सुरक्षा मिल सके, मिटे सकल संत्रास।
प्रेत वहाँ पर डोलते संरक्षण-आवास।। ४३२ ||


यू-पी एम-पी या कहूँ बिगड़ा हुआ बिहार |
दो नारों के बीच में नारी का संहार || ४३३ ||

मचा हुआ है देश में कैसा हाहाकार।
पीड़ा-पारावार की लहर लोल, नीहार।। ४३४ ||


जो विकास की वल्लरी, जिससे सृष्टि-वितान |
बचपन संकट से घिरा, तृणावर्त तूफ़ान || ४३५ ||

रुद्ध काल-गति युद्धमय, क्यों बुद्धत्व-विकास |
मानवता के ह्रास का यह नूतन इतिहास || ४३६ ||

कौन सहारा दे सके, कातर करुण कराह।
कठिन काल विश्वासमय कौन बने मल्लाह।। ४३७ ||

[नीहार-हजारा-अमलदार नीहार]

बेटी : ' चाँद - नूर सा छाया है '