मंगलवार, 15 जून 2021


हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया
"ज़िन्दगी का एक ज़रूरी पाठ"
बहुत सुबह-सबेरे मुँहअँधेरे
कभी यात्रा की त्वरा में
कोई जरूरी कागज़,
खान-खर्च का अपना बटुआ,
कलम, मोबाइल, टिफिन बाॅक्स तक छूट जाता है,
माँ के हाथ की महकती रोटियाँ,
बहू-बेटी के हाथ का अचार-मुरब्बा,
दाढी का सामान, साबुन-तौलिया, जरूरी दवा का पैकेट।
छूट जाता है सोये बच्चे को दुलारना,
नवदम्पति को पुकारना,
सहेजना उत्फुल्ल किलकारियाँ, निर्मुक्त हासोल्लास जीवन का,
धैर्य, संयम, आत्मविश्वास, संकल्प,साहस,स्वप्न
और भटक जाते हैं लक्ष्य से,
कहीं अटक जाते हैं,
लटक जाते हैं असम्भावित आपत्तियों-विपत्तियों, विप्रतिपत्तियों--नवीन निष्पत्तियों के संजाल में,
जंजाल में छूट जाती हैं विचारों की लडियाँ--
वेदना-महाकाव्य की जीवन-कडियाँ
भाव-सत्य की महार्घ मणियाँ भी कभी-कभी।
शायद छूट जाता है कभी-कभी
कपोलों पर प्यार की थपकी देना,
गर्म हथेलियों का भरोसा जीतना,
किसी प्यासे ललाट को चूमना,
पाँव रखते बाहर ड्योढ़ी पर ठिठक जाना
निहारते हुए निहारना किसी को
स्मितप्रभ कान्त किरण को चूम लेना सुधियों के चन्दन वन में,
किसी के पाँव छूना--पहनना आशीर्वाद का कवच,
कोई दिया हुआ वचन, रटाया बाप का पाठ बचपन से,
माँ की मीठी लोरियों में सप्तसुरों का सरस रागिनी-वसन्त,
शैशव सुकुमार की निश्छल विहँसती छवि,
बहन के साथ अत्यावश्यक लडाइयाँ,
कलाई पर बँधे रेशमी डोर--चितचोर शरारतें मासूम,
भाई को गले लगाना, लिपट जाना दोस्त से,
किसी को आश्वासन देना, धीरज बँधाना,
किसी के आँसू पोछना--हाले-दिल पूछना--
जाँचिए अपने आप को, कहीं कुछ भूल रहे हैं?
टटोलिए अपनी जेब और अपना ये दिल भी,
कहीं कुछ छूट रहा है बेहद जरूरी काम--
वक़्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना
सही समय पर जागना और जगाना दूसरों को
वक़्त के दस्तावेज़ पढ़ना, कुछ नया गढना, गढ़ते रहना,
गूढ-गहन अकथ-अबूझ कहना,
अश्रुत सुनना, कुछ सपने बुनना, कोई नई राह चुनना,
कलियों के हौसले बढाना, फूलों को शाबाशी देना,
चिड़ियों को देना चारा, पशुओं को पानी पिलाना,
ममतालुमन तरु-लता को मानो आखिरी बार देखना।
किसी के उलझे ख्वाबों में कंघी करना,
किसी के साथ खडे़ होना कन्धे मिलाकर
थोड़ा-सा खुलना, खोलना किसी को थोड़ा सा,
कहीं पर खिलना, आवश्यक है, किसी से मिलना,
हँसकर बोलना-बतियाना, रूठना-मनाना--
ध्यान रखना, यह सब बहुत जरूरी है जीवन के साथ
काल के अनन्त प्रवाह में
न जाने कौन हुबाबे-आब सा
कब-कहाँ कैसे बिछुड़ जाये--कोई लतिका कहीं मुरझाये,
इससे पहले उसे स्नेह-सुजल से सींच दो,
सहेज लो यादों की अनमोल छवियाँ,
जो अजर और अमर है--
रहेंगी अमर सर्वदा अनन्त काल तक।
[जिजीविषा की यात्रा(कविता-संग्रह)अमलदार नीहार]
Shashank Shukla