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2021 - देश नहीं बचने दूँगा
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अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया
बदलते दौर का दस्तावेज़
नीहार के दोहे
लोकतंत्र के मूल्य का पतन---निरख व्यवहार।
लेती है प्रतिशोध जो, वो कैसी सरकार।। 2174।।
कितनी क़ातिल क्रूरता ज्यों ज़ालिम जल्लाद।
ऐसी हिंसक वृत्ति का मूल कहाँ बुनियाद।। 2175।।
घटनाओं के सिलसिले क्रम से निबद्ध।
राजनीति के सूत्र में पहले करो पिनद्ध।। 2176।।
भेद अगोचर कुछ नहीं, चुभे नज़र जो शूल।
बोये उसकी राह में नेता नीच बबूल।। 2177।।
कौन बुरा, कितना बुरा, कहना मुश्किल आज।
जिसको सत्ता मिल गयी, अटपट कपटी काज।। 2178।।
शासक-निष्ठा में सने समझ ग्राम-शार्दूल।
भौंके, काटे, चाटते पावरफुल पद 'फूल'।। 2179।।
तनिक नहीं संवेदना, करुणा, ममता, प्यार।
सत्ता के ही यंत्र--मद, मोहित मंत्र सवार।। 2180।।
"ऊपर" से संकेत पा कर दे लाठी-चार्ज।
मज़लूमों के खून से सत्ता हुई रिचार्ज।। 2181।।
एक अघोषित युद्ध ज्यों जनहित-देश-विरुद्ध।
परिभाषा 'जनतंत्र' की कितनी कहो विशुद्ध।। 2182।।
कठिन शिकंजे में पड़ा, ब्रिटिश हुकूमत-मुक्त।
शोषण-अत्याचार की पीड़ा अब भी भुक्त।। 2183।।
फूटे 'जन' की खोपड़ी, मरता मरे किसान।
मरे युवा शिक्षित भले, हत आन्दोलन-प्रान।। 2184।।
हर सत्ता को चाहिए केवल क्रीत गुलाम।
जो लगभग रोबोट हों, बिन दिमाग सब काम।। 2185।।
मंत्री-चाबी से चले बने खिलौने, खेल।
आईएएस ऊँट वो, मंत्री हाथ नकेल।। 2186।।
बेशुमार दौलत मिले औ अकूत अधिकार।।
पहलू में कादम्बरी, मिले डाँट-फटकार।। 2187।।
चलो सफलता मिल गयी, अपराधी को क़ैद।
सचमुच सिस्टम को मिला धनवन्तरि-सा बैद।। 2188।।
कभी फँसे अमिताभ तो फाँसे कभी क़फ़ील।
न्याय-सत्य की आँख जो लोहित करुणा-झील।। 2189।।
किन्तु कहीं नेपथ्य में--क्या कुछ, जाने कौन।
सच का पहरेदार जो, रह सकता कब मौन।। 2190।।
सिस्टम से भिड़ जाय जो शेरे-दिल फौलाद।
भंग भृकुटि, सत्ता कुटिल करे उसे बर्बाद।। 2191।।
अगर जगे इंसानियत, जीवित कुछ ईमान।
मारे दर-दर फिर रहे भर सर्विस हलकान।। 2192।।
आत्मघात को हो विवश, अगर जिए सिद्धान्त।
अधिकारी के सीस पर कुपढ़ शक्ति दुर्दान्त।। 2193।।
जागे दुर्गा-शक्त जब, अमित आभ नय-मूल्य।
क्या रह सबके अ-शोक वो, बिंधे कुसुम-दल शूल्य।। 2194।।
कहीं प्रमोशन चाहिए, चरणों में प्रणिपात।
कुत्तेपन की ज़िन्दगी, बरसे धन दिन-रात।। 2195।।
ग़ायब दिली सुकून सब, ज़ेहन जुनूँ, तनाव।
चारण-चमचों से घिरे, बदले भाव-स्वभाव।। 2196।।
जाहिल खल की गालियाँ, थप्पड़ तक स्वीकार। ।
इनमे भी सरकार है! ये भी हैं सरकार।। 2197।।
ख़तरे में इंसानियत, ख़तरे में इंसान।
वर्तमान है घिर चुका, भावी हिन्दुस्तान।। 2198।।
रचनाकाल : 28-29 अगस्त, 2021
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव(तृतीय हिल्लोल)अमलदार नीहार]
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हरमिंदर सिंह भटिण्डा
0:08 / 16:54
जनरल डायर से भी बदतर है खट्टर सरकार! #AbhisarSharma
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हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया
बदलते दौर का दस्तावेज़
नीहार के दोहे
हाय-हाय कर मर गयी मानवता बीमार।
अब तो आये दिन यहाँ हत्या, अत्याचार।।
जो दुर्बल-कमजोर है, कर उसका आखेट।
नरभक्षी कुछ हो गये, क्रूर भेड़िया-पेट।।
सोया है क़ानून क्या तेल कान में डाल।
संसद डायन हो गयी, ठोंके जंघा ताल।।
कसम-खसम सब खा गयी, न्याय बहुत लाचार।
भारत कैंसर-ग्रस्त है, नैतिकता की हार।।
बोल कौन सा धर्म है, शैतानों से कर्म।
नीच नराधम पातकी क्या बूझेंगे मर्म।।
वैश्विक करुणा-प्रेम के छोड़ ढोंग-पाखण्ड।
उदाहरण जो पाप के प्रतिदिन देख प्रचण्ड।।
मजेदार ये क्रूरता, तेरा उत्सव-खेल।
चाहे जिसको मार दो, चाहे जिससे मेल।।
परदुखकातर कौन है, चिन्तित कौन महान।
सब चुनाव में व्यस्त हैं, मस्त सोमरसपान।।
कोई तड़पे दर्द से, जाय किसी की जान।
हत्यारों को छूट है, कैसा हिन्दुस्तान।।
आँसू, सिसकन, दर्द से तड़पे छटपट प्रान।
उधर द्वार सब बन्द हैं दिल के, लोचन, कान।।
आम आदमी हो गया जैसे कीट पतंग।
सत्ता-चाल, चरित्र क्या, देख बदलता ढंग।।
नहीं बचेगा देश अब---सत्य-शील-संस्कार।
राम-कृष्ण का, बुद्ध का देश नहीं 'नीहार'।।
रचनाकार : 29 अगस्त, 2021
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव(चतुर्थ हिल्लोल)अमलदार नीहार]
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