गैस हजारी हो सके, यूँ विकास बेताब |
साहब लिक्खेंगे नयी डेवलेपमेंट-किताब ||
एक निवाले पर करो नब्बे का भुगतान |
जीएसटी को जोड़कर बनता देश महान ||
बीमा कीमा काढ़ ले, कैसा योगक्षेम |
कठिन बुढ़ापे में मिले जमा बराबर क्लेम ||
जीएसटी पर ही मिले नाप-तोलकर साँस |
धुँआ सेंत में घोंट ले, चौराहे पर खाँस ||
दवा दमे की दिल थमा, दुआ करे क्यों काम |
नकली है बाजार में, कर दे काम तमाम ||
सरकारी ये कैंचियाँ हाथ-सफाई खेल |
जेब हमारी कट रही-यह विकास की बेल ||
जार बना बाजार यह, बढ़ा सवाया दाम |
कमर बनी समकोण-सी, घायल पीठ अवाम ||
महँगाई तो मुँह-लगी उनकी बनी रखैल |
आम आदमी हो गया बेगारी का बैल ||
जिसकी सूधी चाकरी भरे टैक्स पर टैक्स |
काले धन का सेठ जो, उसको खुला रिलैक्स ||
जिनगी दूभर हो गयी, समय बड़ा शैतान |
फिर भी सीना गर्व से छप्पन इंच उतान ||
रचना-काल : ०३ नवम्बर, २०१७
[नीहार-नौसई-अमलदार 'नीहार' ]
साहब लिक्खेंगे नयी डेवलेपमेंट-किताब ||
एक निवाले पर करो नब्बे का भुगतान |
जीएसटी को जोड़कर बनता देश महान ||
बीमा कीमा काढ़ ले, कैसा योगक्षेम |
कठिन बुढ़ापे में मिले जमा बराबर क्लेम ||
जीएसटी पर ही मिले नाप-तोलकर साँस |
धुँआ सेंत में घोंट ले, चौराहे पर खाँस ||
दवा दमे की दिल थमा, दुआ करे क्यों काम |
नकली है बाजार में, कर दे काम तमाम ||
सरकारी ये कैंचियाँ हाथ-सफाई खेल |
जेब हमारी कट रही-यह विकास की बेल ||
जार बना बाजार यह, बढ़ा सवाया दाम |
कमर बनी समकोण-सी, घायल पीठ अवाम ||
महँगाई तो मुँह-लगी उनकी बनी रखैल |
आम आदमी हो गया बेगारी का बैल ||
जिसकी सूधी चाकरी भरे टैक्स पर टैक्स |
काले धन का सेठ जो, उसको खुला रिलैक्स ||
जिनगी दूभर हो गयी, समय बड़ा शैतान |
फिर भी सीना गर्व से छप्पन इंच उतान ||
रचना-काल : ०३ नवम्बर, २०१७
[नीहार-नौसई-अमलदार 'नीहार' ]
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