मंगलवार, 7 नवंबर 2017

"फिर भी सीना गर्व से छप्पन इंच उतान"

गैस हजारी हो सके, यूँ विकास बेताब |
साहब लिक्खेंगे नयी डेवलेपमेंट-किताब ||

एक निवाले पर करो नब्बे का भुगतान |
जीएसटी को जोड़कर बनता देश महान ||

बीमा कीमा काढ़ ले, कैसा योगक्षेम |
कठिन बुढ़ापे में मिले जमा बराबर क्लेम || 

जीएसटी पर ही मिले नाप-तोलकर साँस |
धुँआ सेंत में घोंट ले, चौराहे पर खाँस ||

दवा दमे की दिल थमा, दुआ करे क्यों काम |
नकली है बाजार में, कर दे काम तमाम ||

सरकारी ये कैंचियाँ हाथ-सफाई खेल |
जेब हमारी कट रही-यह विकास की बेल ||

जार बना बाजार यह, बढ़ा सवाया दाम |
कमर बनी समकोण-सी, घायल पीठ अवाम ||

महँगाई तो मुँह-लगी उनकी बनी रखैल |
आम आदमी हो गया बेगारी का बैल ||

जिसकी सूधी चाकरी भरे टैक्स पर टैक्स |
काले धन का सेठ जो, उसको खुला रिलैक्स || 

जिनगी दूभर हो गयी, समय बड़ा शैतान |
फिर भी सीना गर्व से छप्पन इंच उतान ||

रचना-काल : ०३ नवम्बर, २०१७
[नीहार-नौसई-अमलदार 'नीहार' ]

    

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