रविवार, 26 नवंबर 2017

कुँवर नारायण को विनम्र श्रद्धांजलि


कवि का इस पृथ्वी-कक्षा से चले जाना
किसी अनाम-अदृश्य पिंड में
दर्शन की भाषा में कहें
तो यह अनंत चेतना की लीला-यात्रा है
या यूँ कहिए कि कायान्तरण एक जीव का,
पंछी का एक डाल से उड़कर
दूसरी डाल पर बैठ जाना ज्यों निस्संग
प्राण-संजीवनी ऑक्सीजन का
जैसे थोड़ा-सा और कम हो जाना
थोड़ा-सा और सहम जाना गंगा का,
शीतल-सुगन्धित मन्द बयार का थम जाना
प्रफुल्ल फूलों का मुरझा जाना
रूठ जाना रंग-भरी तितलियों का
एक और सितारा मानो टूटकर चला गया हो
सावकाश आकाश में |
काल के कराल 'चक्रव्यूह' में अप्रतिहत'आत्मजयी'!
तुम्हारे निर्मित 'आकारों के आसपास' 'कोई दूसरा नहीं'
रक्खा अपने जीवन में सदैव एक आदर्श की तरह
तुमने नचिकेता को 'अपने सामने'
और 'वाजश्रवा के बहाने'
कह डाली इस नश्वर जगत की दुर्दमनीय लिप्सा
'परिवेश : हम-तुम'-यह पातक-परिप्लावित परिदृश्य
'आज और आज से पहले का' जो भी रहा हो,
या फिर 'इन दिनों' जैसी विषमता या विषमयता हो,
हे कविर्मनीषी! परिभू-स्वयंभू-सम्पोषप्राण
कालजयी तुम्हारी कविताएँ साक्षी रहेंगी
तुम्हारी शाश्वत उपस्थिति की
"नास्ति येषां यश:काये जरामरणजं भयम्"
कविकुल-सामाजिक हृदये तव रसाप्यायितपुलकितपंक्तिवलयम्
श्रद्धांजलि विशेषम्  दृगयुगपूरिताश्रुशेषम्।
स्मरामि, भूयो भूयो शिरसा नमामि।

रचनाकाल : १६ नवम्बर, २०१७ 

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