सोमवार, 30 अगस्त 2021

 प्यास का पसरा समंदर अश्क में डूबा हुआ ।

दिल कहूँ या रेत का घर, वक़्त-सा उजड़ा हुआ ॥
जिंदगी तो आईना है मौत की तस्वीर का,
हर लम्हा तस्वीर यह महबूब का देखा किया ।
रास्ते वीरान हैं, एहसास में केवल धुँआ,
उफ़! घुटन कैसी, धुँआ हर साँस में घुटता हुआ ।
रौशनी बीमार-सी लगने लगी मेरे शहर,
दर्द का ऐसा अँधेरा अर्श तक फैला हुआ ।
अब चमन की बात में गुल-बुलबुलों का जिक्र क्यों?
बागबाँ हैरान, उसके साथ भी धोखा हुआ ।
कुछ शरारों के हवाले अब चमन की आबरू
हर किसी की आबरू से खौफ का सौदा हुआ ।
सर कलम कर दे, जिगर को चाक, शूली दे मगर,
पाँव पथ से डगमगा दे, वह नहीं पैदा हुआ ।
ख़्वाब के उड़ते परिंदे परकटे नीचे गिरे
पर नहीं ईमान का कुछ बाल तक बाँका हुआ ।
[आईनः-ए-जीस्त-आलदार "नीहार"]
नमन प्रकाशन
४२३१\१, अंसारी रोड, दरियागंज
नई दिल्ली-११०००२
दूरभाष-०११- २३२१७००३, २३२५४३०६

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें