सोमवार, 30 अगस्त 2021

 बस घूँट भर अंदर गयी, उछलकर बाहर आ गया ।

फ़रिश्ते की तलाश थी, शैतान का घर आ गया ॥
अभी तो गुलाब था दस्त-ए-दोस्ती का फरेब,
न जाने कब उसकी आस्तीन में खंजर आ गया ।
शाइस्ता है, सफ़ीनः है, दिखने में दादख़्वाह
नफ़रत का नुमाइंदा आखिर कब इधर आ गया?
किसी की खूबियों का नाशिर, नाशुकरा किसी का,
नासूत में खाली म्यान लिए सिकंदर आ गया ।
दरियादिली की पीटता लकीर जुर्म का ज़ामिन
दरिंदगी दरोगगोई का यूँ मंजर आ गया ।
चल तू किस्मत का कामिल मैं मुकद्दर का मिस्कीन,
जो कि अपना गाँव छोड़कर तेरे शहर आ गया ।
[आईनः-ए-जीस्त-अमलदार "नीहार"]
नमन प्रकाशन
४२३१\१, अंसारी रोड, दरियागंज
नई दिल्ली -११०००२
दूरभाष : २३२४७००३, २३२५४३०६

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