सोमवार, 30 अगस्त 2021

 27 अगस्त 2020 की पोस्ट दुबारा

अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया
बदलते वक़्त का दस्तावेज़
नीहार के दोहे
वह भी कोई बोल है, लगे कि बजता ढोल।
और कभी फट जाय तो भीतर पोलमपोल।।1891।।
हार्ड वर्क के नाम पर रचे नाश के खेल।
तुर्रा ये भी 'क्या भला हारवर्ड से मेल'।।1892।।
एक उछाले कीच तो अपर सहे चुपचाप।
संसद के इतिहास ने कितने सुने प्रलाप।।1893।।
'रेनकोट में स्नान' की भंगीभणिति उलीच।
जैसे कोई सीस पर स्वयं उडे़ले कीच।।1894।।
मन से मोहन जो रहा, सौरभ सुमन, सुधीर।
उसकी करे बराबरी बिना लडे़ रनधीर।।1895।।
जनगन-मन को रौंदकर केवल मन की बात।
जुगनू को सूरज कहे कहे दिवस को रात।।1896।।
आग लगाये झोपडी, सुन लो मन की बात।
सबकी खाये खोपडी, सुन लो मन की बात।।1897।।
बरसे नभ से फूल भी, लाठी सीस प्रहार।
फूलों जैसे लाडले--छाले पग सुकुमार।।1898।।
कर्जे खा चम्पत हुए साथी दोस्त अमीर।
इसी तरह से आम की, मियाँ हरेंगे पीर।।1899।।
बातें नीरस प्यार की, बातों में विष घोल।
तिकड़म से कुर्सी मिले, राजनीति-भू गोल।।1900।।
नादिर, अहमद, गजनवी, आये भी अँगरेज।
नहीं बराबर हो सका खड्ग लिए चंगेज़।।1901।।
मनमोहन की कल्पना कभी न जल्पक-सोच।
दिया बहुत कुछ देश को, लूटे-खाये पोच।।1902।।
विधवा जैसी रूपसी, लुटा हुआ श्रृंगार।
भारत दीन-दरिद्र माँ करे करुण चीत्कार।।1903।।
एक भिखारिन-सा लगे दुखिया माँ का रूप।
खींचे केश कपूत जो बनकर भोंपू भूप।।1904।।
रचनाकाल : 27 अगस्त, 2020
[नीहार-दोहा-महासागर : द्वितीय अर्णव(तृतीय हिल्लोल)अमलदार नीहार]
शांडिल्य आलोक शर्मा, Ajay Tiwari and 1 other

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