अमलदार 'नीहार'
हिंदी विभाग
ज्ञानकोश शब्द नया है | संभवतः पश्चिम में ज्ञानकोश लिखने का पहला प्रयत्न यूरोप में फ्रांस के कुछ पण्डितों ने अठारहवीं शताब्दी में किया था जिन्हें 'इन्साइक्लोपीडिस्ट' के नाम से जाना जाता है | इनमें फ्रांस के महान दार्शनिक और रचनाकार वाल्तेयर भी थे | हमारी अपनी जानकारी में दुनिया के सबसे पुराने ज्ञानकोशकार महर्षि व्यास माने जाते हैं | महाभारत को इसी लालसा के चलते उन्होंने या उनके शिष्यों ने एक महाकाव्य से अधिक एक महाकोश बना दिया | उन्होंने कहानी में कोने-अँतरे तलाश कर या क्षेपक जोड़कर बहुत से ऐसे विषय और प्रसंग इसमें समेट लिए जिनको किसी महाकाव्य में रखना जरूरी नहीं था | लोगों का यह दावा कि जो कुछ इसमें है, वही अन्यत्र भी मिलेगा, जिसका वर्णन इसमें नहीं है, वह कहीं और मिल ही नहीं सकता, 'यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित' या महाभारत में जिसका वर्णन नहीं है, वह भारत में है ही नहीं , 'यन्न भारते तन्न भारते', इसी को प्रमाणित करता है | इसी के चलते रामायण के चरित्र को भी काफी दूर तक बदलकर उसकी प्रवाहमय कथा को कुछ लद्धड़ बना दिया गया और कुछ इधर-उधर का ज्ञान इनमें भी पिरो दिया गया | रामायण और महाभारत की लोकप्रियता का प्रधान कारण भी यही है कि ये साहित्य की भूख मिटाने से अधिक ज्ञान की भूख मिटाते हैं | तुलसी इस भेद को जानते थे और उन्होंने अपने मानस में नाना पुराणों, निगमों, आगमों के अतिरिक्त अन्यत्र से भी सामग्री लेकर और बहुत सूझ-बूझ से मार्मिक स्थलों पर पिरोकर 'मानस' को वाल्मीकि रामायण से भी अधिक उपयोगी ज्ञानकोश बना दिया | तुलसी के मानस की लोकप्रियता का प्रधान कारण भी भक्तिभावना नहीं, मानस की यही ज्ञानवर्धकता है | अकेले तुलसी का मानस पढ़कर ही अक्षर-ज्ञान रखने वाले नर-नारी पंडित बन जाते रहे हैं और व्यावहारिक जगत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेते रहे हैं | पुराणों का तो लक्ष्य ही था सृष्टि से लेकर प्राचीन इतिहास और अन्य सूचनाओं को एकत्र करना | इन महाकाव्यों ने इस मामले में उन्हें पीछे छोड़ दिया | पर इन सभी की एक सीमा रही है | इनकी प्रकृति आधी धार्मिक और आधी साहित्यिक रही है | यही कारण है कि जिन देशों में भारतीय राजाओं, व्यापारियों और धर्मप्रचारकों का सीधा प्रवेश हो पाया था, जो इनके संपर्क में रहे, उनमें से कुछ ने ही 'रामायण' और 'महाभारत' की कहानियाँ और लीलाएँ पहुँच पायीं | उनका ज्ञानपक्ष वहाँ उपेक्षित ही रहा | पुराणों का प्रवेश हुआ तो भी तो उनका प्रभाव अल्पकालिक ही रहा |
पर भारतीय कृतियों में पंचतंत्र अकेली ऐसी रचना है जिसे सही अर्थ में दुनिया का सबसे पुराना ज्ञानकोष कहा जा सकता | इसे इसी रूप में दुनिया में जाना भी गया | जिन देशों से भारतीयों का नाम मात्र का ही संपर्क रहा, वहां भी इसकी धूम मच गयी थी | जिन देशों में 'रामायण' और 'महाभारत' का नाम आधुनिक काल से पहले नहीं सूना गया, उनमें भी प्राचीन काल में ही इसका प्रवेश हो गया था | जिन भाषाओं का लिखित साहित्य नहीं था, उनमें भी इसका प्रवेश लोक-परम्परा के रास्ते हो गया था | इसका अनुवाद करने वालों ने इसे ज्ञान की किताब कहकर ही अपनाया और अनुवाद किया | वह दुनिया का प्राचीनतम ज्ञानकोश है और विष्णुशर्मा दुनिया के पहले ज्ञानकोशकार | इसकी प्रकृति उतनी ही सम्प्रदायनिरपेक्ष है जितना किसी ज्ञानकोश की होनी चाहिए | शर्माजी ऊँचे परिवारों, ऊँची जातियों, धर्मों, मतों, साधुओं, संन्यासियों, राजाओं, रानियों, मंत्रियों, पुजारियों, पंडों, महंतों, किसी को क्षमा नहीं करते और मानकर चलते हैं कि इनमें से कोई भी उतना ही घटिया हो सकता है जितना घटिया से घटिया आदमी | धर्म, मठ, मन्दिर, जाति, सम्प्रदाय, आदर्श, कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका उपयोग भ्रष्ट और अपराधी लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए न कर सकें और इसलिए प्रशासक को केवल इसलिए इन्हे सहन नहीं करना चाहिए कि भ्रष्ट और अपराधी तत्वों ने इनकी आड़ ली है | यह एक शिक्षा है, जिसे धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्मसमभाव को तकिया कलाम की तरह दुहराते रहने वाले राजनीतिज्ञ और प्रशासक सीख सकें तो वे देश और समाज का बहुत कल्याण करेंगे | सेकुलरिज्म पश्चिम के लिए नई अवधारणा हो सकती है क्योंकि वहाँ धार्मिक जकड़बन्दी इतनी कठोर रही है कि तनिक सी छूट को भी असह्य मानकर भारी रक्तपात होता रहा है | इस देश में इसकी एक लम्बी परम्परा रही है और इसका कुछ श्रेय चाणक्य जैसे अर्थशास्त्रियों और विष्णुशर्मा जैसे रचनाकारों को जाता है |
भगवान सिंह
प्रस्तुति
अमलदार 'नीहार'
हिंदी विभाग
ज्ञानकोश शब्द नया है | संभवतः पश्चिम में ज्ञानकोश लिखने का पहला प्रयत्न यूरोप में फ्रांस के कुछ पण्डितों ने अठारहवीं शताब्दी में किया था जिन्हें 'इन्साइक्लोपीडिस्ट' के नाम से जाना जाता है | इनमें फ्रांस के महान दार्शनिक और रचनाकार वाल्तेयर भी थे | हमारी अपनी जानकारी में दुनिया के सबसे पुराने ज्ञानकोशकार महर्षि व्यास माने जाते हैं | महाभारत को इसी लालसा के चलते उन्होंने या उनके शिष्यों ने एक महाकाव्य से अधिक एक महाकोश बना दिया | उन्होंने कहानी में कोने-अँतरे तलाश कर या क्षेपक जोड़कर बहुत से ऐसे विषय और प्रसंग इसमें समेट लिए जिनको किसी महाकाव्य में रखना जरूरी नहीं था | लोगों का यह दावा कि जो कुछ इसमें है, वही अन्यत्र भी मिलेगा, जिसका वर्णन इसमें नहीं है, वह कहीं और मिल ही नहीं सकता, 'यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित' या महाभारत में जिसका वर्णन नहीं है, वह भारत में है ही नहीं , 'यन्न भारते तन्न भारते', इसी को प्रमाणित करता है | इसी के चलते रामायण के चरित्र को भी काफी दूर तक बदलकर उसकी प्रवाहमय कथा को कुछ लद्धड़ बना दिया गया और कुछ इधर-उधर का ज्ञान इनमें भी पिरो दिया गया | रामायण और महाभारत की लोकप्रियता का प्रधान कारण भी यही है कि ये साहित्य की भूख मिटाने से अधिक ज्ञान की भूख मिटाते हैं | तुलसी इस भेद को जानते थे और उन्होंने अपने मानस में नाना पुराणों, निगमों, आगमों के अतिरिक्त अन्यत्र से भी सामग्री लेकर और बहुत सूझ-बूझ से मार्मिक स्थलों पर पिरोकर 'मानस' को वाल्मीकि रामायण से भी अधिक उपयोगी ज्ञानकोश बना दिया | तुलसी के मानस की लोकप्रियता का प्रधान कारण भी भक्तिभावना नहीं, मानस की यही ज्ञानवर्धकता है | अकेले तुलसी का मानस पढ़कर ही अक्षर-ज्ञान रखने वाले नर-नारी पंडित बन जाते रहे हैं और व्यावहारिक जगत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेते रहे हैं | पुराणों का तो लक्ष्य ही था सृष्टि से लेकर प्राचीन इतिहास और अन्य सूचनाओं को एकत्र करना | इन महाकाव्यों ने इस मामले में उन्हें पीछे छोड़ दिया | पर इन सभी की एक सीमा रही है | इनकी प्रकृति आधी धार्मिक और आधी साहित्यिक रही है | यही कारण है कि जिन देशों में भारतीय राजाओं, व्यापारियों और धर्मप्रचारकों का सीधा प्रवेश हो पाया था, जो इनके संपर्क में रहे, उनमें से कुछ ने ही 'रामायण' और 'महाभारत' की कहानियाँ और लीलाएँ पहुँच पायीं | उनका ज्ञानपक्ष वहाँ उपेक्षित ही रहा | पुराणों का प्रवेश हुआ तो भी तो उनका प्रभाव अल्पकालिक ही रहा |
पर भारतीय कृतियों में पंचतंत्र अकेली ऐसी रचना है जिसे सही अर्थ में दुनिया का सबसे पुराना ज्ञानकोष कहा जा सकता | इसे इसी रूप में दुनिया में जाना भी गया | जिन देशों से भारतीयों का नाम मात्र का ही संपर्क रहा, वहां भी इसकी धूम मच गयी थी | जिन देशों में 'रामायण' और 'महाभारत' का नाम आधुनिक काल से पहले नहीं सूना गया, उनमें भी प्राचीन काल में ही इसका प्रवेश हो गया था | जिन भाषाओं का लिखित साहित्य नहीं था, उनमें भी इसका प्रवेश लोक-परम्परा के रास्ते हो गया था | इसका अनुवाद करने वालों ने इसे ज्ञान की किताब कहकर ही अपनाया और अनुवाद किया | वह दुनिया का प्राचीनतम ज्ञानकोश है और विष्णुशर्मा दुनिया के पहले ज्ञानकोशकार | इसकी प्रकृति उतनी ही सम्प्रदायनिरपेक्ष है जितना किसी ज्ञानकोश की होनी चाहिए | शर्माजी ऊँचे परिवारों, ऊँची जातियों, धर्मों, मतों, साधुओं, संन्यासियों, राजाओं, रानियों, मंत्रियों, पुजारियों, पंडों, महंतों, किसी को क्षमा नहीं करते और मानकर चलते हैं कि इनमें से कोई भी उतना ही घटिया हो सकता है जितना घटिया से घटिया आदमी | धर्म, मठ, मन्दिर, जाति, सम्प्रदाय, आदर्श, कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका उपयोग भ्रष्ट और अपराधी लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए न कर सकें और इसलिए प्रशासक को केवल इसलिए इन्हे सहन नहीं करना चाहिए कि भ्रष्ट और अपराधी तत्वों ने इनकी आड़ ली है | यह एक शिक्षा है, जिसे धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्मसमभाव को तकिया कलाम की तरह दुहराते रहने वाले राजनीतिज्ञ और प्रशासक सीख सकें तो वे देश और समाज का बहुत कल्याण करेंगे | सेकुलरिज्म पश्चिम के लिए नई अवधारणा हो सकती है क्योंकि वहाँ धार्मिक जकड़बन्दी इतनी कठोर रही है कि तनिक सी छूट को भी असह्य मानकर भारी रक्तपात होता रहा है | इस देश में इसकी एक लम्बी परम्परा रही है और इसका कुछ श्रेय चाणक्य जैसे अर्थशास्त्रियों और विष्णुशर्मा जैसे रचनाकारों को जाता है |
भगवान सिंह
प्रस्तुति
अमलदार 'नीहार'