शब्द-ब्रह्म का सच्चा साधक
आराधक उसकी सत्ता का
निष्ठावान पुजारी हूँ में-
कभी 'रथी' आरूढ़ प्राण बन
पार्थ सदृश मैं, अर्थ अपोहित
और कभी मैं बन जाता हूँ शब्द-सारथी
पार्थ-सखा मैं हृषीकेश,मैं योगेश्वर, वह कृष्ण चतुर मैं |
रोम-रोम शब्दों की सिहरन
अर्थ-वलय में लय की थिरकन
हर धड़कन में, प्राण-पुरस्सर
नर्दित शब्द-लहर नित नर्तन |
मैं शब्दों को छू लेता हूँ-शशक सदृश पेशल रोमावलि
और कभी वे काँटों जैसे निशित नुकीले
कँकरीले-खुरदरे-गठीले-कुछ कनेर-पत्तों से पीले
दाहक कुछ अंगार-भरे से |
सुनता हूँ ऐसे मैं, जैसे
काल-गुफा में गूँज रही ध्वनि-
मृत्यु-वधु-नूपुर की रुनझुन
सागर के उत्ताल तरंगाकुल अंतर की व्याकुल धड़कन |
शब्दों के रस पीता रहता ऐसे, जैसे विष पी जाता
आँख मूँद जीवन-अँगड़ाई के अधरों का मादक चुम्बन,
मैं शब्दों का 'मधुप' भ्रमर हूँ-गंध-प्राण मैं, रसिक-चहेता
रस-अध्येता |
सूँघ-समझ लेता हूँ शाद्वल खेतों में क्या फूल खिले हैं,
कहाँ-कहाँ साजिश की बू है, रंग हवा में कौन घुले हैं,
मैं शब्दों की यजन-क्रिया हूँ, मैं शब्दों का चित्रकार हूँ,
मैं शब्दों की सृष्टि प्रकाशित, मैं शब्दों का सत्य-सृजेता
शब्द-ब्रह्म में लीन अनिर्वच
परम तत्त्व की ज्योति-शिखा हूँ-
मैं कुबेर-सा, किन्तु अकिंचन
प्रणव-लीन, पर प्रणयी-याचक शब्दों की सत्ता के सम्मुख |
रचनाकाल : ०७ फरवरी, २०१४
[ह्रदय के खण्डहर-अमलदार 'नीहार']
अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
सरस्वती-स्तवन
रजत किरीट हिमवान, भारती के भाल
कनक किरन रवि रम्य विद्यमान है,
यमुना-तरंग-संग गंग की तरंगिणी में
सरस्वती-रंग का तिरंगा द्युतिमान है ।
खिले शतदल सम सागरों के शत द्वीप
चरन पखारती-सी ऊर्मि साभिमान है,
भारती ही भारत या भारत ही भारती है
आरती में गीत मेरे और गीता-ज्ञान है ॥ १ ॥
मन-प्राण-उर-कंठ-रसना में, रोम-रोम
रमो पोर-पोर, मेरी पीर-तरुनाई में,
भाव में, स्वभाव मेरे, शब्द-शब्द, अर्थ-रस
रचना में लसो छंद-छंद की लुनाई में ।
गुरु में प्रकाश भव्य नव्य दिशाकाशमय
आयत गवाक्ष अक्ष जग की भलाई में,
रसवती सरस्वती ! नय में विनयशील-
सदाचार रूप बसो शिष्य सुघराई में ॥ २ ॥
राजनीति रजस्वला पावसी प्रवाहिनी-सी
बहने से देश का चरित्र तो बचाइये,
बालक मराल चुगें मुक्तिमाल सविवेक,
शकृत न मौकुलि-समान, समझाइये ।
आँधियाँ हजार, बुझे दीप की न जिजीविषा,
ममता की ओट अम्ब! आँचल छिपाइये,
भरे पारावार-किलकारियाँ नीहार-बूँद
मधुरगिनी नवीन बीन तो बजाइए ॥ ३ ॥
[इन्द्रधनुष(प्रथम रंग)-अमलदार "नीहार"]
प्रकाशन वर्ष-२०११
अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
निराला का जन्म माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २९ फरवरी १८९९ को हुआ था और जब उनके पिता रामसहाय ने महिषादल के स्कूल में १३ सितम्बर १९०७ को तीसरी कक्षा में 'सुर्जकुमार' का नाम लिखाया तो दो वर्ष बढाकर । उस समय उनकी वास्तविक उम्र थी दस साल आठ महीने । उनका जन्म बसंत पंचमी को नहीं हुआ था, पर बाद में जब वे कविरूप में ख्यात हो गए तो उन्होंने बसंत पंचमी को ही अपना जन्मदिन घोषित कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि वे सरस्वती के साक्षात पुत्र हैं, इसलिए उनका भी जन्मदिन वही होना चाहिए, जो माँ सरस्वती का है । इसीलिए सरस्वती का यह जन्मदिन निराला-जयन्ती के रूप में भी मनाया जाने लगा । भगवती भारती के साथ इस भारती-पुत्र की पावन स्मृति को भी नमन ।
(रामविलास शर्मा की पुस्तक "निराला की साहित्य-साधना"के अनुसार)
अमलदार "नीहार"
आराधक उसकी सत्ता का
निष्ठावान पुजारी हूँ में-
कभी 'रथी' आरूढ़ प्राण बन
पार्थ सदृश मैं, अर्थ अपोहित
और कभी मैं बन जाता हूँ शब्द-सारथी
पार्थ-सखा मैं हृषीकेश,मैं योगेश्वर, वह कृष्ण चतुर मैं |
रोम-रोम शब्दों की सिहरन
अर्थ-वलय में लय की थिरकन
हर धड़कन में, प्राण-पुरस्सर
नर्दित शब्द-लहर नित नर्तन |
मैं शब्दों को छू लेता हूँ-शशक सदृश पेशल रोमावलि
और कभी वे काँटों जैसे निशित नुकीले
कँकरीले-खुरदरे-गठीले-कुछ कनेर-पत्तों से पीले
दाहक कुछ अंगार-भरे से |
सुनता हूँ ऐसे मैं, जैसे
काल-गुफा में गूँज रही ध्वनि-
मृत्यु-वधु-नूपुर की रुनझुन
सागर के उत्ताल तरंगाकुल अंतर की व्याकुल धड़कन |
शब्दों के रस पीता रहता ऐसे, जैसे विष पी जाता
आँख मूँद जीवन-अँगड़ाई के अधरों का मादक चुम्बन,
मैं शब्दों का 'मधुप' भ्रमर हूँ-गंध-प्राण मैं, रसिक-चहेता
रस-अध्येता |
सूँघ-समझ लेता हूँ शाद्वल खेतों में क्या फूल खिले हैं,
कहाँ-कहाँ साजिश की बू है, रंग हवा में कौन घुले हैं,
मैं शब्दों की यजन-क्रिया हूँ, मैं शब्दों का चित्रकार हूँ,
मैं शब्दों की सृष्टि प्रकाशित, मैं शब्दों का सत्य-सृजेता
शब्द-ब्रह्म में लीन अनिर्वच
परम तत्त्व की ज्योति-शिखा हूँ-
मैं कुबेर-सा, किन्तु अकिंचन
प्रणव-लीन, पर प्रणयी-याचक शब्दों की सत्ता के सम्मुख |
रचनाकाल : ०७ फरवरी, २०१४
[ह्रदय के खण्डहर-अमलदार 'नीहार']
अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
सरस्वती-स्तवन
रजत किरीट हिमवान, भारती के भाल
कनक किरन रवि रम्य विद्यमान है,
यमुना-तरंग-संग गंग की तरंगिणी में
सरस्वती-रंग का तिरंगा द्युतिमान है ।
खिले शतदल सम सागरों के शत द्वीप
चरन पखारती-सी ऊर्मि साभिमान है,
भारती ही भारत या भारत ही भारती है
आरती में गीत मेरे और गीता-ज्ञान है ॥ १ ॥
मन-प्राण-उर-कंठ-रसना में, रोम-रोम
रमो पोर-पोर, मेरी पीर-तरुनाई में,
भाव में, स्वभाव मेरे, शब्द-शब्द, अर्थ-रस
रचना में लसो छंद-छंद की लुनाई में ।
गुरु में प्रकाश भव्य नव्य दिशाकाशमय
आयत गवाक्ष अक्ष जग की भलाई में,
रसवती सरस्वती ! नय में विनयशील-
सदाचार रूप बसो शिष्य सुघराई में ॥ २ ॥
राजनीति रजस्वला पावसी प्रवाहिनी-सी
बहने से देश का चरित्र तो बचाइये,
बालक मराल चुगें मुक्तिमाल सविवेक,
शकृत न मौकुलि-समान, समझाइये ।
आँधियाँ हजार, बुझे दीप की न जिजीविषा,
ममता की ओट अम्ब! आँचल छिपाइये,
भरे पारावार-किलकारियाँ नीहार-बूँद
मधुरगिनी नवीन बीन तो बजाइए ॥ ३ ॥
[इन्द्रधनुष(प्रथम रंग)-अमलदार "नीहार"]
प्रकाशन वर्ष-२०११
अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
निराला का जन्म माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २९ फरवरी १८९९ को हुआ था और जब उनके पिता रामसहाय ने महिषादल के स्कूल में १३ सितम्बर १९०७ को तीसरी कक्षा में 'सुर्जकुमार' का नाम लिखाया तो दो वर्ष बढाकर । उस समय उनकी वास्तविक उम्र थी दस साल आठ महीने । उनका जन्म बसंत पंचमी को नहीं हुआ था, पर बाद में जब वे कविरूप में ख्यात हो गए तो उन्होंने बसंत पंचमी को ही अपना जन्मदिन घोषित कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि वे सरस्वती के साक्षात पुत्र हैं, इसलिए उनका भी जन्मदिन वही होना चाहिए, जो माँ सरस्वती का है । इसीलिए सरस्वती का यह जन्मदिन निराला-जयन्ती के रूप में भी मनाया जाने लगा । भगवती भारती के साथ इस भारती-पुत्र की पावन स्मृति को भी नमन ।
(रामविलास शर्मा की पुस्तक "निराला की साहित्य-साधना"के अनुसार)
अमलदार "नीहार"
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