मंगलवार, 1 जनवरी 2019

एक दिन हम इस चमन के बागबाँ बनके रहेंगे ।

एक दिन हम इस चमन के बागबाँ बनके रहेंगे ।
शक नहीं इसमें, नहीं हम नातवाँ बनके रहेंगे ॥

गुल-बहारों-बुलबुलों के वे दिन फिरेंगे फिर कहीं
ख़्वाब की परवाज़ के हम आसमाँ बनके रहेंगे ।

हम तोड़ देंगे इस वतन की मुश्किलों के हौसले
प्रेम का दरिया दिलों के दरमियाँ बनके रहेंगे ।

नासूर नफ़रत का मिटे, मैमून अपना है यही
आज तो चाहे अकेले, कारवाँ बनके रहेंगे ।

दो कदम ईमान से कोई चले तो साथ मेरे
एक दिन सारे जहाँ सच की सदा बनके रहेंगे ।

चिपका हुआ है मुफलिसी का दाग जो तस्वीर में
दूसरा सच्चा मुसव्विर या खुदा! बनके रहेंगे ।

[आईनः-ए-ज़ीस्त-अमलदार 'नीहार']
४२३१/१, अंसारी रोड, दरियागंज
नई दिल्ली-११०००२

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