मैं भी रसानन्द बरसाऊँ
( लगभग २५ वर्ष पहले की रचना)
( लगभग २५ वर्ष पहले की रचना)
काजल की स्याही में पिघली प्रीति, मनोहर धूप घोलकर
चितवन की पाती जो लिख दो, पढ़कर मन की प्यास बुझाऊँ ।
चितवन की पाती जो लिख दो, पढ़कर मन की प्यास बुझाऊँ ।
उर में छिटके धवल चाँदनी, पूनम की अँगड़ाई की,
साँसों में भर जाय सुरभि शुचि पाटल वन-अमराई की ।
अलकावलि तुम दो बिखेर, लुट जाए शोभा अलका की
और कुबेर अकिंचन, लिप्सा सुषमा की परछाईं की ।
साँसों में भर जाय सुरभि शुचि पाटल वन-अमराई की ।
अलकावलि तुम दो बिखेर, लुट जाए शोभा अलका की
और कुबेर अकिंचन, लिप्सा सुषमा की परछाईं की ।
मौसम अलबेला भी चाहे रख दे तेरा रूप तोलकर,
और एक कण पाकर जिसका मैं कुबेर जैसा बन जाऊँ ।
और एक कण पाकर जिसका मैं कुबेर जैसा बन जाऊँ ।
लीला लंक, मनोरम उर्मिल, ये नदियाँ इठलाती हैं,
पीन पयोधर सानु, घाटियों-सी चूनर लहराती है ।
चलापाङ्ग से ग्राम-वधूटी-सी सकुचाई-सहमी ज्यों,
लहरा प्रियतम प्रणय-पाश में साधिकार खो जाती है ।
पीन पयोधर सानु, घाटियों-सी चूनर लहराती है ।
चलापाङ्ग से ग्राम-वधूटी-सी सकुचाई-सहमी ज्यों,
लहरा प्रियतम प्रणय-पाश में साधिकार खो जाती है ।
मिल जाती हो तुम अनन्त में मन के सारे भेद खोलकर
औ अभेद का पाठ पढ़ाकर मुझको, कैसे उसे भुलाऊँ ?
औ अभेद का पाठ पढ़ाकर मुझको, कैसे उसे भुलाऊँ ?
वेणी में दो फूल गुँथे हैं, समझो रवि-राकेन्दु भले;
अनगिन ग्रह उडुमाल-आभरण, ग्रीवा गगन-सुगंग रले ।
परिवर्तन पायल की रुनझुन, काल-कुशीलव इंगित पर
जाता-फिरता, उठती-गिरती सृजन-प्रलय की ऊर्मि ढले ।
अनगिन ग्रह उडुमाल-आभरण, ग्रीवा गगन-सुगंग रले ।
परिवर्तन पायल की रुनझुन, काल-कुशीलव इंगित पर
जाता-फिरता, उठती-गिरती सृजन-प्रलय की ऊर्मि ढले ।
जगद्व्यापिनीं सुन्दरते ! तुम 'रसमय हो नीहार' बोलकर
जीवन-रसानन्द बरसाओ, मैं भी रसानन्द बरसाऊँ ।
जीवन-रसानन्द बरसाओ, मैं भी रसानन्द बरसाऊँ ।
[गीत-गंगा(पंचम तरंग)-अमलदार "नीहार"]
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