मंगलवार, 1 जनवरी 2019

आत्मा क्यों बावली है ?

आत्मा क्यों बावली है ?
हे मनोहर मीत मेरे! प्राण-पुलकित प्रीत मेरे!
साँस-सुरभित गीत मेरे! पीर शब्दों में ढली है ।
कण्टकों की सेज सोया, दर्द दुनिया के मैं रोया,
प्राण-पलकों में पिरोया आँसुओं की नम कली है ।
मौत के सँग सात फेरे, साथ वह दिन-रात मेरे,
ज़िंदगी में बस अँधेरे, बन्द होती-सी गली है ।
मैं भला हूँ या बुरा हूँ, पर न इतना बेसुरा हूँ,
जिसलिए जीता-मरा हूँ, दुष्ट माया मनचली है ।
''था बहुत 'नीहार' अच्छा, क्या ठहाका? यार अच्छा"
कल कहेगी-" प्यार सच्चा", आज दुनिया दिलजली है ।
भेद तो सारा खुला है, ज़िंदगी में विष घुला है,
चार दिन का बुलबुला है, आत्मा क्यों बावली है?
[गीत-गुंजार-अमलदार "नीहार"]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें