शुक्रवार, 30 मार्च 2018

"काला अध्याय : कसाई का ठीहा"

न केवल ममता-मूर्ति, अमोघ करुणा की पुत्तलिका,
प्रस्नुत पीयूष-औधस स्नेह-वात्सल्य की सदानीरा
धैर्य-शील-शान्ति-संयम की पराकाष्ठा
तितिक्षा-प्रतीक्षा-पूर्ति, माधुर्य-सौन्दर्य-हिल्लोल,
दीप्ति-कान्ति-क्षमा, भक्ति-शक्ति और जिजीविषा की ज्योति
है वह कराल काल-जिह्वा भी कृतान्त-भृत्या
कृत्या-सी खेलती है मौत-राग-फाग
तमोगुण में लीन नाश-लीला रचाती है,
अनगिन से नाम धरे गए उसके
आख्यानों में-व्याख्यानों में-
की ताड़का, सुरसा, सिंहिका, शूर्पणखा, शर्मिष्ठा वह,
हिडिम्बा, पूतना, मन्थरा,कैकेयी, तिष्यरक्षिता, इन्द्राणी-राधे माँ,
कि चुड़ैल, डायन व कुटनी, विषकन्या, नागिन, नरकद्वार,
कि वामा, विलासिनी, वरवनिता, कालगर्ल, पुंश्चली,
छिनाल-छिन्न नाल, कामिनी, कमीनी भी ।
अजीब विडम्बना है कि औरत होती है
अक्सर औरत की ही दुश्मन बदनाम,
शोषक भी वह, शोषित भी प्रकाम-
पीहर में 'संज्ञा' ससुराल में 'सर्वनाम',
शांतिकाम, अशांति-धाम,
अवसर जो मिले तो क्या से क्या बन सकती है औरत,
उसी की कोख से सृजन-वही पालनहार,
तरणी भी-तारिणी भी, वही पतवार
कर सकती है सर्वनाश-प्रत्यवहार सम्पूर्ण सृष्टि का
सपनों का-अपनों का, पापियों का-परायों का,
वह विष की बुझी छुरी-सी पैनी,
तीखी-तेज कृपाण-कटार, बर्छी-तलवार,
बन्दूक और तोप भी स्त्रीसंज्ञक सारे हथियार,
होती है भगवान् रूप कभी बन डॉक्टर्स व नर्स
बाँटती है हर्ष प्रकर्ष, सच्चे अर्थों में मिस यूनिवर्स,
लेकिन तनिक ठहरिये जनाब-पीतल पर भी चढ़ा है सोने का आब
भगवान् व शैतान के बीच बस थोड़ी-सी फाँक है,
किसी का जिगर चाक है-हलकू हलाक है,
गर है उसमें सेवा का पावन भाव व प्रीति-पूत त्याग तो
कहीं पैसे की भेड़िया भूख, अपरिमित प्यास की धधकती आग,
शहर-दर शहर, मोहल्ले-कसबे में जार बाज़ार
कसाईबाड़े-से खुले हुए नर्सिंग होम, हजारों हेल्थ सेंटर
नीम हकीम फर्जी डिग्रीधारी अयोग्य, कसाइयों के हवाले,
बेहोश शहर, बदहाल गाँव की विश्वास-भावुक असहाय-सी ज़िंदगी
हवाले अपराधियों-संगठित गिरोहों के-रखवाले से कसाई-ठीहे,
न उनको किंचित आँच-झूठ से हारा हुआ साँच,
लीवर, हार्ट, किडनी, डैमेज सब कुछ,
इजाफा कुछ और रोगों का इलाज के बाद
कि 'सेवा' और 'मेवा' के बीच जटिल बीमारियों का बोनस-
'ब्रेन हैमरेज', 'कैंसर', 'हार्ट अटैक'-ज़िंदगी की गाड़ी बिना पावर ब्रेक
क्या कुछ गलत कहा था गाँधी ने-"कि डाक्टर कसाई होता है"?
आदमी न जीता है, न मरता है, बस पैसा फूँकता है और रोता है,
जहाँ जाँच पर जाँच-एक्सपाइरी दवाइयाँ, नकली इंजेक्शन,
नीचे से ऊपर तक, ऊपर से नीचे तक सबका सबसे कनेक्शन,
कौन जाँचेगा इसे कि तमाम नर्सिंग होम
लम्पट बाजार में सभ्य रण्डीखाने हैं या फिर कसाई के ठीहे
कि किश्तों में मिलती मौत की दुकान पर ज़िंदगी का ठेका,
जहाँ पैसे की कातिल छुरी से रेता जाता है गला मुफलिसी का,
पैसा नहीं है आपके पास तो सड़ते रहिये बन ज़िंदा लाश,
ये बड़े-बड़े हॉस्पीटल जागते मसान की मौत-सीढियाँ,
मुमकिन है इलाज मुर्दों का सिर्फ पैसे के लिए
ये कारोबार दहशतगर्दों का सिर्फ पैसे के लिए
आँतों को ये फाड़ देंगे-ज़िंदा ज़मीन में गाड़ देंगे,
भरते घाव उघाड़ देंगे सिर्फ पैसे के लिए
जालिम हाँ, जल्लाद हैं, कसाई हैं ऐसे डाक्टर
सचमुच यमराज के भी बड़े भाई हैं ऐसे डाक्टर
पैसा तो फूँकते हैं लोग, पर न गारंटी किसी बात की
मरना है अगर कल तो आज ही मर जाइये,
दूसरी गरदन हाजिर है ठीहे पर कटाने के लिए ।
ये पटी-पटायी आशा बहुएँ ये घूमते हुए दलाल,
चेहरे पर तैरती मक्कारी, खैरख्वाही गोलमाल,
मिलीभगत, नकली दवा कंपनियों से
कि बँधा हुआ कमीशन जाँच-केंद्रों से
तगड़ी फीस हफ्ता-दर हफ्ता चतुर चाल,
लड़ने को मुस्टंड पोज़ हुए पहलवान, पुलिस को बख्शिश,
राजनेताओं को गुंडा टैक्स, मीडिया को जूठन-खैरात
जालिम बहेलियों का बिछ हुआ जाल-
जहाँ होता है आदमी के हाथों इंसानियत की आत्मा हलाल ।
जिसे बनाया था वसूलों ने धरती का भगवान, और है भी,
न समझ पाए कोई, जहन्नम का शैतान आखिर क्योंकर बना?
मुस्कुराती हुई 'सिस्टर" मसीहा-सी सफेदपोश ये महिला डाक्टर
होती है नहीं क्या देवी-सी अलौकिक ज्योतिर्मयी
नयनों में आत्मविश्वास की आभा-आश्वासन की थपकी-दुलार,
मगर न जाने क्यों पैसे पर नजर पड़ते ही उसकी
वह आदमखोर बाघिन बन जाती है,
बदल जाता है पवित्र पेशे का ईमान,
गर्भाशय का बच्चा 'सौदेबाजी की पोटली' नजर आता है,
मरे या जिए अब उसकी बला से-
किसी की चीख-पुकार व मातम से क्या लेना उसे,
हैं खून साणे हाथ फरिश्तों के भी इस दुनिया में ।
शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक
[मेरी कविताओं में 'स्त्री' : स्त्री का जीवन और जीवन में 'स्त्री' -अमलदार "नीहार"]
२७ मार्च, २०१८

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