शुक्रवार, 30 मार्च 2018

कौन जाने?


(रचनाकाल-११ फरवरी १९९८, बलिया, उत्तर प्रदेश)
रात आधी और उँगली के इशारे कौन जाने?
ज़िंदगी तो बस अँधेरे के सहारे कौन जाने?

आँसुओं का रूप दरिया, ज़िंदगी भी रेत जैसी
प्यास की किश्ती हमारी कब किनारे, कौन जाने?
चुप हवा की मुट्ठियों में कैद खुशबू रूह की है,
इस चिता की राख में कितने शरारे, कौन जाने?
हो गयीं बौनी यहाँ पर पेड़ की परछाइयाँ क्यों?
फिर क्षितिज कोई नया सूरज उतारे, कौन जाने ?
चाँदनी को लीलने में है लगा कला ग्रहन यह
हाय बेबस आसमाँ के हैं सितारे, कौन जाने?
रू-ब-रू नीहार के हैं प्रश्न जैसे क्रौंच घायल
प्यार में पागल पपीहा पिउ पुकारे, कौन जाने?

[ आईनः-ए-ज़ीस्त-अमलदार "नीहार"]
प्रकाशन वर्ष २०१५
नमन प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें