बुधवार, 4 जुलाई 2018

नदियाँ हमारी जीवन-धारा

अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग

पिछले वर्ष की पोस्ट

बेजोड़ कविता, कविता की आत्मा का जीवन्त दस्तावेज़ | चाहे इसे नर्मदा कहो, गंगा कहो, यमुना कहो या क्षिप्रा या कृष्णा-कावेरी | नदियाँ हमारे जीवन की संवाहिका हैं और हमारी संस्कृति की जीवन-धारा भी | नदियों ने आत्महत्या नहीं की है, इसे हमारी सरकारों की अदूरदर्शी नीतियों ने अनगिन किस्तों में मृत्युदंड दिया है और इन नदियों की धीमी मौत के साथ हमारे जीवन में रेगिस्तान भरता चला गया है | सरकारें और मुनाफाखोर उद्यमिता नदियों की मौत की अपराधिनी हैं-अपनी जड़ मान्यताओं, रीति-रिवाजों, परम्पराओं के पालन में अवैज्ञानिक जड़बुद्धि के कारण हम भी इस ह्त्या में थोड़े से  हिस्सेदार हैं | हम अपने को सुधार सकते हैं, पर नदियों की छाती पर जहरीली नागिन की तरह निरंतर डँसने वाले बाँधों और औद्योगिक कचरों को संवर्द्धन देने वाली सत्ता ने जिस प्रकार इन नदियों का गला रेता है, इसकी सजा किस देश की अदालत दे सकती है, यह विचारणीय है | पर्यावरण का संकट किसने खड़ा किया है, इस पर स्वस्थ मन से विचार किया जाना चाहिए |

अमलदार 'नीहार'
०४ जुलाई, २०१७ 

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satyam सागर की पोस्ट गोपाल राठी की वाल से

नर्मदा का मतलब
अमरकंटक से खंभात की खाड़ी
के बीच की धरती में एक लंबाकार गड्ढे
में भरे पानी से नही है।
जैसे किसी कागज पर बने
एक नक्शे को तुम देश नही कह सकते।
नर्मदा का अर्थ वह प्यास भी है
जो नदी की आस में लगती है और
नदी को देखकर जुड़ा जाती है।
तुम उलझे रह सकते हो नर और मादा के
संधि विग्रह करते हुए
त्याग के आध्यात्मिक भाष्य तैयार करने में
लेकिन नर्मदा का होना
सोनमुडा का होना भी है
नदियों के मानवीयकरण का शौक रखते हो
तो रहस्यवाद की गलियों में घुसकर बच नही सकते।
नर्मदा और सोन का होना
प्रेम का होना है
उद्दाम और जंगली प्रेम
बुढनेर के नर्मदा में मिलने के जैसा।
नर्मदाष्टक की बुदबुदाहट ही उसका
महात्म्य नही है महोदय
नर्मदा का होना उस अनीश्वरवादी
परंपरा का होना भी है
जो कपिल और जाबालि के बहाने
नर्मदा के किनारे फली फूली
आरोग्यप्रद जड़ी बूटियों की तरह।
आप तो चुनरी चढ़ाकर
और महाआरती सजाकर
सत्ता के सिंहासन पर आरूढ़ हुए
पर नर्मदा का होना उस यात्री से तो पूछो
जो नंगे पाँव ही निकल पड़ा है
परकम्मा पर
जबकि घर मे जवान बेटी है
ब्याह के इंतज़ार में
और कुल खेती गिरवी है
साहूकार के पास
मैया किरपा करेंगीं तो ठीक नही तो
हज़ार तरीके हैं
मिट्टी में मिल जाने के।
उसके लिए नर्मदा पर्व है, त्योहार है
आपके लिए सब कुछ व्यापार है।
मिट्टी भी रेत भी
फसल भी और खेत भी।
आपके लिए नर्मदा क्षिप्रा का कुम्भ है
भोपाल और इंदौर के लिए पाइपलाइन।
लेकिन सुदूर गंगा के किनारे
पेड़ों से चिपककर
जंगल बचाता वह बूढा आपको
याद ही नही है।
आप भूल जाते हो सारी नदियों
की तबाही
आपके लिए नर्मदा का अर्थ बांध हैं
एक दो नही सैकड़ों
बिजली है
बिजली से चमचमाते मॉल, सेज
आईपीएल के मैच हैं
आपके लिये नर्मदा सट्टेबाजी का जरिया है
इसलिये आपने उसे मां तो कहा बार बार
पर उसी के सीने पर तान दिए भीमकाय बांध
और काया से निकाल ली
सारी की सारी रेत।
आप भूल ही गये हो कि
नर्मदा समर्पण का नाम नहीं
संघर्ष की प्रतिरूप है
अगस्त्य यही से तो गए थे सागर पान करने।
नर्मदा गति है, नर्मदा जीवन है।
नर्मदा सिर्फ कहने के लिये सभ्यता नही है
वह प्रतीक है
धरती पर मनुष्य के आगमन की
नर्मदा माने बैगाचक भी है
कोयला और तांबे की खदाने
सतपुड़ा के घने जंगल
गोंड, बैगा, भारिया और भील भिलाला
कपिलधारा से लेकर भेड़ाघाट
और सहस्त्रधारा
सैकड़ो प्रजाति के जानवर और
हज़ार बिरादरी के पेड़
ये सब नर्मदा ही तो हैं।
और सुनिये साहेब जी
आपके लिए होगी नर्मदा सरदार नाम के
किसी सरोवर की तरह,
मेरे लिए तो मेधा पाटकर भी
नर्मदा का ही एक नाम है।
( सत्यम सागर की वाॅल से)

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