गुरुवार, 5 जुलाई 2018

हमारी हिन्दी

गंगोत्री गीर्वाणभारती शब्द सुधोपम नीर ,
पीकर पुलकित है हिन्दी की आत्मा और शरीर |
पाली-प्राकृत तथापभ्रंश के तीर्थ मनोहर घाट ,
छूकर बहती हिन्दी की गंगा का रूप विराट |
सूर-सिन्धु जल, तुलसी-दल है, बीजक-भाव कबीर ,
बानी रस की खानि, रहीम, मीरा की पगली पीर |
जहाँ एक से एक जायसी, सूफी सन्त फकीर ,
ठाकुर के छन्दों में उड़ता, होली-रंग अबीर |
मिथिला-कोकिल, केशव, भूषन, देव और मतिराम ,
पद्माकर-पंचामृत छलका, रसिक-बिहारी नाम |
बोधा का 'वारीश विरह', रस बरसे घन आनन्द ,
प्रेम-पीर-दृग अश्रु मचलते, मधुर छलकते छन्द |
भारतेन्दु-रस, गुप्त-भारती, दिनकर-दीपित ओज ,
'रामशक्ति की पूजा' अर्पित मुकुलित नवल 'सरोज' |
भारत की इस हिन्दी का है भव्य निराला ठाट ,
जयशंकर के शुचि 'प्रसाद' से ज्यों भूषित सम्राट |
कामायनि कवि-कला-कामिनी का सौन्दर्य अनूप ,
सरस्वती के कर-किसलय से रचा सत्य शिव रूप |
प्रेमचन्द की होरी-धनिया का जीवित 'गोदान' ,
शुक्ल-समीक्षा 'रसमीमांसा' औषधि राग-निदान |
प्रकृति-पुरोधा पन्त, वहीं 'माँ, जीवन-सहचरि-प्राण' ,
मीरा-महादेवियों को कब, पीड़ा से परित्राण |
'दीपशिखा' से जलते, सजल सिसकते 'यामा'-गीत ,
पीड़ा ने श्रृंगार किया, उमड़े 'चलचित्र-अतीत' |
फिर से 'निशा निमंत्रण' हाला 'मधुशाला' की ओर ,
आकुल अधर अभी जीवनामृत-प्याला की ओर |
राग उषारुण ताप तरल मधुराका शीतल सार ,
शूल-फूल पर जिजीविषा सम पुलकित पल 'नीहार' |
  डॉ० अमलदार ' नीहार '

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