भारत भा-रत अब कहाँ, गुजर गया गुजरात |
झूठ-घृणा-हिंसा लता-तरु-प्रसून-फल-पात ||
गाँधी तेरे देश में अब आँधी-तूफ़ान |
मिथ्याग्रह-आराधना, ठगना साधु समान ||
नीयत खोटी हो गयी दिल-दिमाग पाखण्ड |
नए दौर व्यक्तित्व वह चमके सूर्य प्रचण्ड ||
भीतर-बाहर एक तू, जैसा चरित विचार |
अब विचार कुछ और है और पृथक व्यवहार ||
पका हुआ जीवन सतत सत्याग्रह की आँच |
आज सियासत में चले खेल तीन औ पाँच ||
नहीं किसी की चाह अब साधन-शुचिता-खोज |
सबको सिद्धि-तलाश है, सच को फाँसी रोज ||
तन से तू कंगाल था, मन से मालामाल |
उर-अंतस परमात्म-प्रभु, जीवन जिया कमाल ||
सच का दामन थाम दो कदम चले कुछ राह |
जल्पक जिह्वा नीति को क्यों गाँधी की चाह ||
सत्याग्रह की मूर्ति नव बने सदी में एक |
चरखा चक्र सँभालकर साधे सिद्धि विवेक ||
ब्रिटिश हुकूमत हिल गयी गाँधी नंग-धडंग |
डरे नहीं जो काल से निस्पृह साधु मलंग ||
गाँधी सरल-सुजान अति, निष्ठुर-दया निधान |
तपोपूत संयमधनी बनना क्या आसान ||
पावन जिसकी आत्मा पीड़ित जन-जन-प्रेम |
मानवता सद्धर्म है वैश्विक मंगल-क्षेम ||
[ नीहार-नौसई-अमलदार 'नीहार' ]
०२ अक्टूबर २०१७
झूठ-घृणा-हिंसा लता-तरु-प्रसून-फल-पात ||
गाँधी तेरे देश में अब आँधी-तूफ़ान |
मिथ्याग्रह-आराधना, ठगना साधु समान ||
नीयत खोटी हो गयी दिल-दिमाग पाखण्ड |
नए दौर व्यक्तित्व वह चमके सूर्य प्रचण्ड ||
भीतर-बाहर एक तू, जैसा चरित विचार |
अब विचार कुछ और है और पृथक व्यवहार ||
पका हुआ जीवन सतत सत्याग्रह की आँच |
आज सियासत में चले खेल तीन औ पाँच ||
नहीं किसी की चाह अब साधन-शुचिता-खोज |
सबको सिद्धि-तलाश है, सच को फाँसी रोज ||
तन से तू कंगाल था, मन से मालामाल |
उर-अंतस परमात्म-प्रभु, जीवन जिया कमाल ||
सच का दामन थाम दो कदम चले कुछ राह |
जल्पक जिह्वा नीति को क्यों गाँधी की चाह ||
सत्याग्रह की मूर्ति नव बने सदी में एक |
चरखा चक्र सँभालकर साधे सिद्धि विवेक ||
ब्रिटिश हुकूमत हिल गयी गाँधी नंग-धडंग |
डरे नहीं जो काल से निस्पृह साधु मलंग ||
गाँधी सरल-सुजान अति, निष्ठुर-दया निधान |
तपोपूत संयमधनी बनना क्या आसान ||
पावन जिसकी आत्मा पीड़ित जन-जन-प्रेम |
मानवता सद्धर्म है वैश्विक मंगल-क्षेम ||
[ नीहार-नौसई-अमलदार 'नीहार' ]
०२ अक्टूबर २०१७
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