मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

विराट व्यक्तित्व गाँधी का और उनका विलोम

भारत भा-रत अब कहाँ, गुजर गया गुजरात | 
झूठ-घृणा-हिंसा लता-तरु-प्रसून-फल-पात ||

गाँधी तेरे देश में अब आँधी-तूफ़ान | 
मिथ्याग्रह-आराधना, ठगना साधु समान ||

नीयत खोटी हो गयी दिल-दिमाग पाखण्ड | 
नए दौर व्यक्तित्व वह चमके सूर्य प्रचण्ड ||

भीतर-बाहर एक तू, जैसा चरित विचार |
अब विचार कुछ और है और पृथक व्यवहार ||

पका हुआ जीवन सतत सत्याग्रह की आँच |
आज सियासत में चले खेल तीन औ पाँच ||

नहीं किसी की चाह अब साधन-शुचिता-खोज | 
सबको सिद्धि-तलाश है, सच को फाँसी रोज ||

तन से तू कंगाल था, मन से मालामाल | 
उर-अंतस परमात्म-प्रभु, जीवन जिया कमाल ||

सच का दामन थाम दो कदम चले कुछ राह | 
जल्पक जिह्वा नीति को क्यों गाँधी की चाह ||

सत्याग्रह की मूर्ति नव बने सदी में एक | 
चरखा चक्र सँभालकर साधे सिद्धि विवेक ||

ब्रिटिश हुकूमत हिल गयी गाँधी नंग-धडंग | 
डरे नहीं जो काल से निस्पृह साधु मलंग ||

गाँधी सरल-सुजान अति, निष्ठुर-दया निधान | 
तपोपूत संयमधनी बनना क्या आसान ||

पावन जिसकी आत्मा पीड़ित जन-जन-प्रेम | 
मानवता सद्धर्म है वैश्विक मंगल-क्षेम ||


[ नीहार-नौसई-अमलदार 'नीहार' ]
०२ अक्टूबर २०१७

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