मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

पैसा! पैसा!! पैसा!!!

पैसा मन की भूख है, पैसा माई-बाप | 
रिश्ते-नाते, बन्धु भी, कपट-कसाई पाप || २२६ ||
रिश्ता रिसकर बह चला, पैसा-पैसा रेत |
दृग-दरिया में बाढ़-सी, सूखे दिल के खेत || २२७ ||
पैसा कैसा हो गया दूषित जमुना-नीर |
रमे प्राण-मन-चेतना रोगी पिंजर-कीर || २२८ ||
पैसा-पानी एक से, सूखे कल्मष-कीच |
दानी-कर में पुण्य-फल लहे पाप जो नीच || २२९ ||
कालानल की आँच में रूपा-रुपया-रूप |
रह जायेंगे एक दिन माटी-पानी-धूप || २३० ||
मृग-मरीचि की प्यास ज्यों दावानल की भूख |
बने दीन-से हंस कुछ वाहन रमा-उलूक || २३१ ||
अन्यायालय हो गए न्याय-सदन शत प्रेत |
सही-गलत हर काम का पैसा ही अभिप्रेत || २३२ ||
सबको सब ही मूँड़ते बगुले-कौए-चील |
साँसें बेदम हो गयीं चलकर अन्धे मील || २३३ ||
पैसा भी तो बह गया, बचा न फिर भी प्यार |
पैसा किसका बन्धु है, पैसा किसका यार || २३४ ||
अमला कमला कीट-सा रचे खेल अभिराम |
खेत किसी के नाम का, चढ़ा किसी के नाम || २३५ ||
छूट लूट की हर जगह, पाले सभी डकैत |
मोटी फ़ाइल-शब्द कुछ, जिनके अर्थ करैत || २३६ ||
ऊपर-नीचे एक लय, रिश्वत की जंजीर |
कठिन कचहरी-पाँव में पैसे की मंजीर || २३७ ||
बचा न कोई प्यार है या जीवित विश्वास ||
बूँद शहद की जीभ पर, कह न जाय संत्रास || २३८ ||
झूठ बहुत बहुरूपिया, सच भी काली जोंक |
सेज पीर-परिरम्भ यह करुणाप्यायित शोक || २३९ ||
अधिकारी अधिकारि-ज्यों बेकाबू-से क्लर्क |
मंत्री मन्त्र-विहीन हैं, कार्यालय सब नर्क || २४० ||
लीला भी क्या राम जी! है असार संसार |
रहे जूझ सब, लेखते निर्निमेष 'नीहार' || २४१ ||
रचनाकाल : ०४ जून, २०१८
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-हज़ारा-अमलदार 'नीहार']

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