मेरा राम, रहीम वही तो, सतगुरु है वह प्यारा ।
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, मेरा है गुरुद्वारा ॥
मैं हिन्दू या सिक्ख मुसलमाँ और न मैं ईसाई,
मन्दिर में पूजा की, मस्जिद में आवाज़ लगाईं ।
गीता-गुरुबानी-कुरान का सार एक ही पाया-
"एक पिता परमात्मा सबका, आपस में सब भाई ।"
मन्दिर में पूजा की, मस्जिद में आवाज़ लगाईं ।
गीता-गुरुबानी-कुरान का सार एक ही पाया-
"एक पिता परमात्मा सबका, आपस में सब भाई ।"
धरती एक, गगन है सबका सूरज-चन्दा-तारा ।
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, मेरा है गुरुद्वारा ॥
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, मेरा है गुरुद्वारा ॥
रंग लहू का एक सभी का, सुख-दुःख की सम भाषा;
स्नेह-दया की, प्यास-भूख की वही एक परिभाषा ।
सम है जीवन, जिजीविषा भी, जीवन-अंत सभी का;
बचपन-यौवन, सम है जर्जर ज़रा, सौख्य-अभिलाषा ।
स्नेह-दया की, प्यास-भूख की वही एक परिभाषा ।
सम है जीवन, जिजीविषा भी, जीवन-अंत सभी का;
बचपन-यौवन, सम है जर्जर ज़रा, सौख्य-अभिलाषा ।
चाहे जिस नौका पर बैठो, मिलता वही किनारा ।
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, मेरा है गुरुद्वारा ॥
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, मेरा है गुरुद्वारा ॥
शोषण कर दुर्बल का सबने वैभव यहाँ समेटा,
पर जीवन से विदा-समय में केवल कफ़न लपेटा ।
सने हुए क्यों हाथ लहू में, ऐहिक छोडो स्वार्थ सकल;
कौन किसी की भार्या-भगिनी, भाई या फिर बेटा?
पर जीवन से विदा-समय में केवल कफ़न लपेटा ।
सने हुए क्यों हाथ लहू में, ऐहिक छोडो स्वार्थ सकल;
कौन किसी की भार्या-भगिनी, भाई या फिर बेटा?
सुनता उसकी, जिसने व्याकुल चातक-सदृश पुकारा ।
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, मेरा है गुरुद्वारा ॥
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद, मेरा है गुरुद्वारा ॥
रचनाकाल-१० सितम्बर सन १९९२ (फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश )
[गीतगंगा(सप्तम तरंग)-अमलदार "नीहार" ]
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